Wednesday 8 July 2015

मैं साक्षी... यह धरती की - लता तेजेश्वर

Reviews, Vol I, Issue IV

लता तेजेश्वर एक उभरती हुई रचनाकार हैं। इनकी लेखनी की सबसे बड़ी खासियत यह है की वे हिंदी भाषी नहीं होते हुए भी हिंदी में कविताएँ, उपन्यास आदि सृजन करती है। इनकी अनेक काव्य कृतियाँ छप चुकी हैं। अभी हाल ही में ही भूटान में इनकी लिखी उपन्यास 'हवेली' का लोकार्पण हुआ।
                
इनकी काव्य संग्रह "मैं साक्षी... यह धरती की" मुझे समीक्षार्थ मिली। इस संग्रह में नई कविताओं की एक ऐसी गुलदस्ता है, जिसमें जीवन के अनेक रंग समाहित है। प्रत्येक गुल की अपनी ही दास्तान है, अपना ही रंग है जो कविता प्रेमी हॄदय को पुष्पित कर देता है।
               
कोई कविता प्यार के रंगों से भरपूर है तो कहीं इनकी कविता में जीवन की सच्चाई का वर्णन है तो कहीं नारी अंतर्मन तथा शोषण की दास्तान हैं। इस संग्रह की सारी कविताएँ इंसानी जिंदगी के विभिन्न रंगों से हमें परिचित करवाती है। खास कर इस संग्रह की भूमिका "मैं साक्षी... यह धरती की" जिसमें इन्होंने धरती के बनने के समय से लेकर आज तक की तकलीफ़ को धरती और अपने बीच तादात्मय स्थापित करते हुए एक सूत्रधार की तरह ऐसे परिभाषित किया है जैसे की मानों धरती के साथ हुए हर घटनाओं की वह गवाह है/साक्षी है। यह इनकी गहरी सोच का परिचय है। सच, एक नारी ही धरती की पीड़ा को समझ सकती है। इसलिए नारी की तुलना सदैव धरती से की गयी है। जिस प्रकार धरती मूक हो कर अपने व्यथा को सहती है, जिसे उसने अन्न, जल, शुद्ध हवा दी वही मनुष्य धरती को आज विनाश के कगार पर खड़ा कर चुका है। उसी प्रकार स्त्री भी अपनों के दिए हुए दुःख और तकलीफ झेलती है। कभी स्त्री के अस्तित्व का प्रश्न तो कभी उसके साथ यौन शोषण, तो कभी उसे जन्म देने से पहले ही मिटा दिया जाता है। जैसे कि धरती अपने अंदर ज्वालामुखी को दबाए रखती है, औरत भी धरती की तरह अपने अंदर अपमान के ज्वालामुखी को सहती रहती है। धरती तो फिर भी अपने अंदर के ज्वालामुखी का विस्फोट कर कभी प्रलय तो कभी भूकंप के रूप में आती है। परंतु औरत तो हमेशा मूक ही रहती है और इसे ही अपना नियति मान लेती है।
              
लता तेजेश्वर जी के रचनाओं में कहीं जीवन मरण से जुड़े जटिल प्रश्न है तो कहीं कृष्ण की दीवानी राधा का प्रेम है। जबतक सृष्टि रहेगी राधा-कृष्ण का प्रेम लोगों के समक्ष एक उदहारण प्रस्तुत करते हुए यह कहता रहेगा कि प्रेम का अर्थ पाना नहीं त्याग है, बंधन नहीं मोक्ष है।
              
लताजी ने अपनी कविता "वेदना" में राधा के मन की व्यथा, कृष्ण के प्रेम की आकुलता तथा राधा के नयनों में कृष्णा की एक झलक देखने के लिए उनके प्रतीक्षा की पीड़ा को दर्शाया है। "वेदना" में राधा के प्रेम के उदगार तथा कृष्ण के कर्तव्य पालन छवि को दिखलाया गया है,-

                   "भौ कृष्ण, कबतक
                   तेरे आगमन को निहारूँ?
                       मन चितवन विचलित कर
                        गोपियों के संग रास रचाते
                        मुझे अपनी मानस पट से
                       दूर नहीं कर सकते।"
                 
वहीँ इनकी कविता "आत्मन" में जीवन मृत्यु जैसे विषय पर प्रश्न उठाया गया है। इसमें इंसान के मन में उठने वाले प्रश्नों को दर्शाया गया है। हर इंसान के मन में यह प्रश्न उठता है कि मैं कौन हूँ? जीवन क्या है? मरण क्या है? इंसान का अस्तित्व क्या है? इसी पर मनन किया गया है। इसमें कवयित्री ने "नचिकेता" की कथा को उदहारण स्वरूप लिया है। जिस प्रकार नचिकेता ने जन्म मरण के प्रश्नों को 'यम'' के समक्ष रखे थे वहीँ प्रश्न इनके मन में उभरते नज़र आते हैं।  

साहित्यकार का कार्य ही है नवीनता को तलाशना। आत्मन की इन पंक्तियों में मनुष्य के मन में उठने वाले प्रश्न हैं-

               "कभी मेरे मन में एक सवाल दस्तक दी थी।"
               " कहाँ से आती है जिन्दगी और कहाँ जाती है?"
               "हम कौन है?"
                "मैं कौन हूँ?"
                "मेरा अस्तित्व क्या है.. (पॄष्ठ-64)

सच यही है।  जीवन के इन्ही प्रश्नों का जवाब खोजते-खोजते इंसान की जिंदगी खत्म हो जाती है।
                  
इसके अलावे "तवायफ" "किताब" "आर्तनाद" जैसी कविताएँ भी दिल को छू लेती है। "आवारा मैं" कविता में एक "पॉलीथिन" की आत्मकथा उसके अपनी ही जुबानी कही गयी है। जो लेखिका के उच्चकोटि सोच के दौरान है।
                   "कहाँ से आया मैं..
                    कहाँ है जाना...
                   ना कोई मंजिल ना कोई ठिकाना।"
             
पॉलीथिन उन लावारिस बच्चों की तरह है जिसका कोई ठौर ना कोई ठिकाना है। माँ बाप की गलतियों का नतीजा, ये अनाथ बेसहारा बच्चे जिन्हें उनके माँ बाप अनाथ-आश्रम या गली नुक्कड़ में छोड़ जाते हैं। ये आवारा बच्चे इन आवारा पॉलीथिन के भाँति इधर उधर भटकते हैं। लताजी के कविता की यही खसियत है। "सवाल" में वे एक किसान की दयनीय स्थिती को दर्शाती हैं।  इसके अलावे "अनकही बातें" "साथी" "एहसास" दिल को छू लेने वाले कविता है। इनके काव्य की माला में एक से बढ़कर एक मोती हैं। इन मोतियों को कोई जौहरी ही परख सकता है।
              
आज के भागम-भाग वाले युग में जहां इंसान आगे बढ़ने की होड़ में लगा है, वहीँ अगर वह चन्द मिनट काव्य रास स्वादन में लगा दे तो अनेक समस्याओं का समाधान हो जाएगा।
              
लताजी की कविताएँ हमारे मन में उठने वाले काव्य प्यास को शांत करती है। जीवन से जुड़े हर प्रश्न का उन्होंने कविता के माध्यम से सुन्दर वर्णन किया है। अहिन्दी क्षेत्र की होते हुए भी उन्होंने हिंदी में कवितायेँ लिखकर हिंदी के मान को बढ़ाया है। वैसे भी हमारे हिंदी साहित्य में अनेक अहिन्दी क्षेत्र के लोगों ने काव्य, कहानियाँ तथा उपन्यास की रचना की है । हिंदी को आगे बढ़ाने में इनलोगों के अमूल्य योगदान को हमेशा सम्मान मिलेगा।  
 - संजू शरण | लेखिका

No comments:

Post a Comment